महापंडित श्‍याम पांडिया

आमेर-जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा आयोजित अश्‍वमेध यज्ञ की सफलता, जब देश विदेश से आमंत्रित दिग्‍गजातिदिग्‍गज पंडितों-याज्ञिकों की उपस्थिति के बावजूद संदिग्‍ध हो गई और महाराजा सवाई जयसिंह, जो स्‍वयं एक विश्‍वप्रसिद्ध ज्‍योतिषि एवं विद्वान थे, अत्‍यन्‍त चिंतित व निराश होने लगे तो जानकार लोगों ने यज्ञ भूमि के शोधन, पूजन या वेदी निर्माण में दोष की आशंका प्रकट करते हुए महाराज को बीकानेर रियासत से सिद्ध पुरुष महा पंडित श्‍याम पांडिया को बुलाकर परीक्षण एवं परामर्श करने की सलाह दी।

बीकानेर महाराजा से महापंडित श्‍याम पांडिया के सम्‍बन्‍ध में प्राप्‍त जानकारी की पुष्टि, के आधार पर यज्ञ का निमंत्रण लेकर जब राज्‍याधिकारी जयपुर से श्‍याम पांडिया के गांव पहुंचे तो वहां खेत में श्रमरत भीमकाय घुटनों तक धोती मात्र पहले कृष्‍णवर्ण कृषक से मिलकर विश्‍वास ही नहीं कर पाए कि वही पंडित श्‍याम पांडिया हैं जिन्‍हें लिवाने के लिए सैकडों मील से उन्‍हें पठाया है; परन्‍तु रवानगी से पूर्व श्‍याम पांडिया ने अपनी पर्णकुटी में रखे घड़े के आधे पानी से स्‍नान कर गीली धोती को सुखाने के लिए खुले आकाश में उछाल दी तो आमंत्रक राज्‍याधिकारी यह देखकर चमत्‍कृत हो गए कि चंद क्षणों में ही न केवल सूखकर वरन् सिमटी हुई धोती आसमान से श्‍याम पांडिया के हाथों में आ गई।

महापंडित श्‍याम पांडिया को ससम्‍मान यज्ञ स्‍थल पर लाकर महाराजा जयसिंह से मिलाया गया तो महाराजा ने यज्ञ की सफलता में उत्‍पन्‍न आशंका जनित अपनी भावी चिंता से श्‍याम पांडिया को अवगत कराया। समस्‍त सुविज्ञ पंडितों की उपस्थिति में श्‍याम पांडिया ने अपने इष्‍ट का ध्‍यान कर यज्ञ भूमि एवं मुख्‍य वेदी की परिक्रमा कर साष्‍टांग दण्‍डवत करते हुए भू शोधन किया और घोषणा की कि मुख्‍य वेदी की भूमि अशुद्ध है। याज्ञिकों एवं महाराजा पशोपेश के बावजूद दृढ़ विश्‍वास एवं निर्भीकता के भरोसे श्‍याम पांडिया ने मुख्‍य वेदी को खुदवा दिया और 15'20 फीट की गहराई में दबी पड़ी मृत ऊंट की टांग निकाल कर दिखाई तो सबको महापंडित श्‍याम पांडिया के निर्णय के समक्ष नतमस्‍तक होना ही पड़ा।

तत्‍पश्‍चात श्‍याम पांडिया ने अपनी निगरानी में मुख्‍य वेदी का पुन: निर्माण कराया और देश विदेश से आए पंडितों के साथ सम्मिलित रहकर कलिकाल के उस महान अश्‍वमेध यज्ञ को सफलता पूर्वक सम्‍पन्‍न कराया। यज्ञ पूर्णाहुति के पश्‍चात् महाराजा सवाई जयसिंह ने याज्ञिकों व पंडितों को पर्याप्‍त एवं मनोवांछित दक्षिणाएं व उपहार देकर विदा यिका और पौंडरीक जी, सम्राट जी, ओझा जी जैसे अनेक सिद्धों, पंडितों याज्ञिकों को नवस्‍थापित जयपुर नगर की ब्रह्मपुरी बस्‍ती में बसने के लिए निवेदन करते हुए बड़ी-बड़ी जागीरें, विशाल आवासीय भवन, बाग, भूमि भेंट की और महापंडित श्‍याम पांडिया को भी उनका समस्‍त सुविधाओं सहित जयपुर में बसने हेतु निवेदन किया तो उन्‍होंने अपनी सर्वत्‍यागी प्रवृत्ति के अनुरूप कुछ भी स्‍वीकार करने से इनकार कर दिया और वापस अपने गांव जाकर रहने लगे।

जयपुर में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा आयोजित अश्‍वमेध यज्ञ को सुसम्‍पन्‍न कर आततायी मुगल साम्राज्‍य को मंत्र, यज्ञ एवं सिद्धि बल द्वारा समाप्‍त कराने में भागीदार होने का श्रेय सिद्ध पुरुष श्‍याम पांडिया को मानते हुए बली जनपद एवं बीकानेर क्षेत्र के लोग- विशेषतया वहां का पारीक समाज अपने आपको "श्‍याम पांडिया री भोम" के निवासी कहने में गौरव अनुभव करते हैं।

महापंडित श्‍याम पांडिया के सम्‍बन्‍ध में जानकारी प्राप्‍त करने हेतु अपने बीकानेर प्रवास में लेखक श्री दीनानाथ पारीक वहां के तत्‍कालीन विधायक श्री रावतमाल जी पारीक से मिले तो उन्‍होंने अपने पिताजी द्वारा वर्णित उपरोक्‍त जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि सर्वस्‍व त्‍यागी तपोनिष्‍ठ सिद्ध पुरुष श्‍याम पांडिया का जन्‍म पारीक ब्राह्मणों की पांडिया शाखा में तत्‍कालीन बीकानेर रियासत के चूरू जिला की तारानगर तहसील के मदास गांव में करीब 300 वर्ष पूर्व हुआ था। अपना विद्याध्‍ययन पूर्ण करने के पश्‍चात ऋषि तुल्‍य श्‍याम पांडिया आजीवन अपनी जन्‍मभूमि मदास स्थित उनके खेत में ही पर्णकुटी बनाकर समस्‍त बाह्याडम्‍बरों एवं लौकिक प्रलोभनों से निस्‍पृह रहते हुए कर्मयोगी की तरह अनेक विद्याएं एवं सिद्धियां प्राप्‍त की। ऐसे सर्वत्‍यागी तपोनिष्‍ठ पारीक सिद्ध महापुरुष का नाम सरकारी रिकॉर्ड अथवा राजपुरुषों राजनेताओं की किसी इतिहास में अंकित न हुआ हो परन्‍तु जनता के हृदय पट्ट पर श्‍याम पांडिया का नाम स्‍वर्णाक्षरों में अंकित है। जिसके परिणामस्‍वरूप उनकी जन्‍मभूमि एवं कर्मस्‍थली आज करीब 3 शताब्‍दी बाद भी श्‍याम पांडिया "राधोरां" नाम से विख्‍यात है, जहां यात्रियों के लिए पानी का विशाल कुण्‍ड एवं धर्मशाला जनता द्वारा निर्मित है और प्रतिवर्ष "श्‍याम पांडे का मेला" भरता है, जिसमें हजारों नर नारी मेले में शामिल होकर सिद्ध पुरुष श्‍याम पांडिया का ख्‍याति नाम अमर बनाए हुए हैं। महामानव श्‍याम पांडिया की सम्‍पूर्ण वंशावली एवं उनके वंश का एक परिवार बीकानेर नगर में बसे होने का उल्‍लेख कवि भीम पांडिया द्वारा रचित भीमानन्‍दी राजस्‍थानी में अंकित किया गया है।

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