सारस्‍वत समाज

सारस्‍वत कौम आदि कौम है, सृष्टि की उत्‍पत्ति परमपिता परमेश्‍वर विष्‍णु भगवान की नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा एवं ब्रह्मा के चरों दिशाओं में देखने से चार मुख तथा उनके सृष्टि की कल्‍पना व उत्‍पत्ति से मरीचि ऋषि का पैदा होना पाया गया। इन्‍हीं मरीचि ऋषि से वंश श्रृंखला के महान मुर्धन्‍यदैवज्ञ ब्रह्मा के पौत्र श्रृंखला में अर्थवर्ण ऋषि हुए जिन्‍होंने मां भगवती की आराधना की व उन्‍हीं के आशीर्वाद से कंदर्य ऋषि की पुत्री शान्‍ती से ऋषि की शादी हुई जिनके 2 संतान- एक पुत्र द‍धीचि तथा एक पुत्री नारायणी पैदा हुई। 

मां सरस्‍वती व दधीचि (दध्‍यंग) ऋषि से सारस्‍वत कुल का पैदा होना बताया जाता है जिनका क्षेत्रवार नाम भी रहा है। एक मान्‍यता यह भी है कि सरस्‍वती नदी के किनारे रहनेवाले ब्राह्मण सारस्‍वत कहलाए। सरस ऋषि की संतान के रूप में भी प्रसिद्धि फैली हुई है। सारस्‍वत समाज (कुण्‍डीय) में चार थांबा (स्‍तंभ), 24 जातियां शामिल हैं। 

कोलकाता में सारस्‍वत समाज (कुण्‍डीय) की स्‍थापना 11 अप्रैल 1994 को हुई, संस्‍था गठन के पश्‍चात संस्‍था द्वारा अपना निजी कार्यालय खरीद कर मुख्‍य उद्देश्‍य की प्राप्ति की है। 

कार्यालय पता- पी-11, चितपुर स्‍पर, कोलकाता- 700007

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