सृष्टिविस्‍तार

भगवान की शक्ति से सम्‍पन्‍न ब्रह्माजी ने जब सृष्टि के विस्‍तार के लिए संकल्‍प किया, उस समय उनके अपने ही समान दश पुत्र उत्‍पन्‍न हुए जो मानस पुत्र कहलाते हैं। वे हैं मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्‍त्‍य, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्‍ठ, दक्ष और नारद। प्रजापति दक्ष ब्रह्माजी के दाहिने अंगूठे से पैदा हुए थे। ब्रह्माजी से दक्ष, दक्ष से अदिती से विवस्‍वान (सूर्य), विवस्‍वान से मनु, मनु से ईला, ईला से पुरूरवा, पुरूरवा से आयु, आयु से नहुष, नहुष से ययाति का जन्‍म हुआ। ययाति के दो पत्नियां थी- देवयानी वशर्मिस्‍ठा, देवयानी से यदु और शर्मिस्‍ठा से पुरू हुए। इनमें यदु से यादव और पुरू से पौरव हुए, पुरू से जन्मेजय (प्रवीर), जनमेजय से प्राचिन्‍वान, प्राचिन्‍वान से संयाति, संयाति से अहंयाति, अहंयाति से सार्वभौम, सार्वभौम से जयत्‍सेन, जयत्‍सेन से अवाचीन, अवाचीन से अरिह, अरिह से महाभौम, महाभौम से अयुतनामी, अयुतनामी से अकसे से देवातिथी, देवातिथी से अरिह, अरिह से ऋक्ष, ऋक्ष से मतिनार, मतिनार से तंसु, तंसु से ईलिन से दुष्‍यंत, दुष्‍यंत से अकोध, अकोध से भरत, भरत से भूमन्‍यु, भूमन्‍यु से सुहोत्र, सुहोत्र से हस्ति (जिसने हस्तिनापुर बसाया), हस्ति से विकुन्‍ठन, विकुन्‍ठन से अजमीढ़, अजीमढ़ से संवरण, संवरण से सुर्य कन्‍या तपती ने विवाह किया जिसके गर्भ से कुरू का जन्‍म हुआ।

कुरू से विदुर, विदुर से अनश्‍वा, अनश्‍वा से परीक्षित, परीक्षित से भीमसेन, भीमसेन से प्रतिश्रवा, प्रतिश्रवा से प्रतीप, प्रतीप से शान्‍तनु, शान्‍तनु से भागीरथी गंगा के गर्भ से भीष्‍म पैदा हुए, भीष्‍म ने सत्‍यवती का विवाह शान्‍तनु से करवाया। उसी सत्‍यवती की कोख से महर्षि पराशर से कन्‍यावस्‍था में द्धैपायन व्‍यास उत्‍पन्‍न हुए। फिर उसी सत्‍यवती से राजा शान्‍तनु द्वारा दो पुत्र और हुए। विचित्रवीर्य और चित्रांगद। विचित्रवीर्य के कोई संतान नहीं हुई थी तथा माता सत्‍यवती की आज्ञा से भाई की स्‍त्री से नियोग द्वारा महर्षि व्‍यास ने धृतराष्‍ट्र, पांडु और विदुर को उत्‍पन्‍न किया था। पांडु की पत्‍नी कुंती तथा माद्री थी। उनके युधिष्‍ठर, भीम, अर्जुन तथा नकुल व सहदेव ये पांच पुत्र हुए। इन पांच पुत्रों के कुल 11 पुत्र हुए जिनमें सिर्फ अर्जुन का ही वंश चला। अर्जुन के अभिमन्‍यु के परीक्षित, परीक्षित के जन्मेजय हुए। इन्‍हीं जन्मेजय ने सर्पविध्‍वंशक यज्ञ किया था।

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