पारीक वंश परिचय

पारीक वंश, पारीक शब्‍द तथा गौत्र की जानकारी :-

"छन्‍याति ब्राह्मणों में पारीकों का स्‍थान प्रथम है। यह जाति सर्वदा से राजा महाराजाओं से प्रतिष्‍ठा तथा गौरव पाती आई है। प्रसिद्ध कुश (कछवाह) वंशावतंस महाराजा सवाई जयपुर के कुल गुरु पुरोहित ये ही हैं, और इस वंश में इनकी पुरोहिताई सनातन से चली आई है।"

महर्षि वशिष्‍ठ के पुत्र शक्ति हुए, शक्ति के पराशर के वेदव्‍यास ओर उनके पुत्र शुकदेव हुए। शुकदेव के कीर्तीमती नामकी कन्‍या तथा पांच पुत्र हुए। किर्तीमति का विवाह विभ्राज के पुत्र अणुह के साथ हुवा। इनसे ब्रह्मदत्त जी हुए यही महातपस्‍वी और ज्ञानी ब्रह्मदत्त शुकदेवजी  की इच्‍छानुसार पराशर के वंश में गये। उस वंश में जाने से ही (पुत्री का धर्मानुसार) ब्रह्मदत्त और उनकी संतान ''पाराक्‍य'' कहलाये इसी का अपभ्रंश  शब्‍द पारीक है। पराशर को पार-ऋषी ऐसा नाम मिला हुवा था। इससे भी पारर्ष व ''पारीक'' सिद्ध हुवा प्रमाणित होता हैं। गौत्र के चलाने वाले ऋषी का नाम पराशर जी हैं। इ‍सलिए उनके वंशज पारीक कहलाये। इसी पारीक वंश में चार सो वर्ष पूर्व 108 शाखाएं थी जो वर्तमान में 80 ही रह गई हैं। संव‍त् 1300 विक्रम के आरम्‍भ में तावणा मिश्र श्री ज्ञानचूडजी ने संसार भ्रमन करके पता लगाकर यह निश्‍चत  किया था कि पारीकों के 9 आस्‍पद, 12 गौत्र और 108 शाखाएं विद्यमान है। इसके बाद सम्‍वत् 1531 में देवर्षि कठवड़ पारासर व्‍यास ने लालचन्‍द नामक पण्डित को बहुत सा द्रव्‍य देकर पारीकों के गौत्र शाखाओं का पता लगाने के लिए अनेक देशों में भ्रमण के लिए भेजा था।

उस समय 9 आस्‍पद 12 गौत्र तथा 103 शाखाएं थीं।इसके बाद सम्‍वत् 1600 वि. ज्‍येष्‍ठ शुक्‍ला द्वितीया को सांगानेर नगर में बरणा जोशी जोगाजी के पुत्र छीतरमलजी की पुत्री सुभद्रा बाई के विवाह में अकबर बादशाह की आज्ञा से उस‍के पुत्र जहांगीर ने समस्‍त भारत वर्ष के पारीकों को फरमान भेजकर बुलाया था। उस समय कापड़ोदा जोशी गोकुल जी ने लिखा था कि पारीकों की शाखा 103 थी। वि.सं. 1531 में सेढूजी के वंशज देवऋषीजी ने जमुआरामगढ़ में भारी जाति सम्‍मेलन किया उस समय अपने कुल गुरू से समस्‍त भारत के पारीकों की गणना करवाई।

उस समय पूरे भारत में पारीकों के घरों की संख्‍या 1,99,050 थी।जो ब्राह्मण वेद और वेदागों का व्‍याख्‍यानो द्वारा विवेचन करके संसार में विस्‍तार करने लगे उनका आस्‍पद (उपाधि) ऐसा हुआ। जो ब्राह्मण वेद के एक देश (मंत्र अथवा ब्राह्मण भाग) को अपनी जीविका के लिए द्विजातियों को पढ़ाता है उस ब्राह्मण का नाम उपाध्‍याय होता है। जो ब्राह्मण वेद-वेदांग का पूर्ण विद्वान होकर पुरोहिताई करने लगे, उनको पुरोहित कहने लगे।  पारीक ब्राह्मणों में जिन ब्राह्मणों ने वेद की तीनों संहिताओं का पठन पाठन अच्‍छी तरह से किया उनका नाम त्रिपाठी (तिवाड़ी) हो गया। जो ब्राह्मण अपने धर्म का पूर्ण रीती से पालन करते हुए विष्‍णु भक्‍त होकर वेदों की संहिताओं का पठन पाठन करते थे उनका नाम द्विवेदी हो गया। जो ब्राह्मण सांग (होरा, संहिता, गणित अंक सहित) ज्‍योतिष शास्‍त्र को अच्‍छी तरह जानकर संसार की सामाजिक सेवा करते थे उनका नाम  ज्‍योतिषी (जोषी) हो गया। पारीकों में जो ब्राह्मण कर्मकाण्‍ड पारायण होकर वैदिक धर्म कर्म का प्रचार करते हुए वेद और शास्‍त्रों की रक्षा पठन पाठन से करने लगे उनका नाम पाण्‍डेय (पाण्‍डे) पाण्डिया हो गया। जो ब्राह्मण अनेक कर्म (पंडिताई, व्‍यापार, खेती, लेन-देन आदि) करने लगे।

उनकी मिश्रित (मिलीहुई) वृति होने से वे मिश्र अर्थात (बोहरा) कहलाने लगे। जो ब्राह्मण कर्मकाण्‍ड से प्रकाण्‍ड पंडित होकर देवता और ब्राह्मणों से यज्ञादि से भरण पोषण करते थे वे भट्ट कहलाये। वे ही किसी कारण वश कौशिकी नदी के तट पर निवास करने के कारण कौशिक भट्ट कहलाये। पारीकों में गौत्रों का प्रचलन भी व्‍यावसाय, सम्‍मान एंव स्‍थान विशेष से हुआ है। जैसे बई ग्राम में रहने से बैया हो गये। ओडींट ग्राम में रहने से ओडींट हो गये। जो अग्निहोत्र करते थे, उनका नाम अग्‍नोत्‍या हो गया। जो धर्म प्रचार के लिए संसार में भ्रमण करते थे वे भ्रमाणा हो गये। भार्गव मुनि के शिष्‍य भारगों कहलाये। रतनपुरा गावं में रहने से रतनपुरा हो गये। जो कठोती गांव में रहते थें वे कठोतिया हो गयें।

जवाली ग्राम में रहने वाले जावला हो गयें। रोजड़ा ग्राम में रहने से रोजड़ा कहलाये। गोगड़ा ग्राम में बसने से गोगड़ा हो गये। गोलवा गांव के निवासी गोलवाल हो गये। जो ब्राह्मण ब्राह्मणों की सेवा करते थे वे बामणिया हो गये। जो ब्राह्मण ओजस्‍वी थे वे ओझाया हो गये। जो भोजन में मिष्‍ठान अधिक खाते थे वे लापस्‍या हो गये। धार्मिक कार्यो में जिनका वरण किया जाता था, वे वरणा हो गये। जो अपनी पण्डिताई को संसार में प्रकट करते थे वे पिंडताणिया हो गये। सुरेड़ी गांव में रहने वाले सुरेड़ीया हो गये।  छ: न्‍याति संघ की स्‍थापना: - ब्राह्मणों के प्रथम उत्‍पति स्‍थान को मनु ने ब्राह्मवर्त नाम के देश से वर्णन किया है और उसे देवनिर्मित देश लिखा है। उन्‍होंने उस देश की सीमाएं भी निर्दिष्‍ट की है और लिखा है कि वह देश सरस्‍वती और गन्‍डकी नदियों के बीच स्थित हैं। ब्राह्मणों की उत्‍पति बार-बार जीस देश मे होती हैं उस देश को ब्राह्मवर्त कहते हैं। कुरूक्षेत्र-मत्‍स्‍य (मारवाड़-ढुंढाड़, मेवाड़-शेखावाटी) पंचाल (पंजाब) शूरसेन (मथुरा) ये पूर्वोक्‍त ब्राह्मवर्त से मिले हुए हैं। सब साधक, बाधक प्रमाणों का समन्‍वय करने से सिद्धान्‍त यह निकलता हैं कि पूर्व में गन्‍डकी गंगा का संगम पश्चिम तथा दक्षिण सरयू, उत्तर में हिमालय इन चारों के मध्‍य में गौड़ देश सिद्ध हैं। गौड़ जाति में सैकड़ों बल्कि हजारों भेद हैं।

जाति भास्‍कर एवं ब्राह्मणोंत्‍पतिमार्तन्‍ड ग्रंथ में 12 और 84 तथा ब्राह्मण निर्णय में  18 और जाति अन्‍वेषण में 37 भेद लिखे है।। जनमेजय राजा के समय गौड़ जाति के 1444 भेद हुए। वे समस्‍त भेद कोई वंश विशेष के नाम से, कोई देश भेद से और कोई कुल प्रवर्तक ऋषी के  नाम से हुए। जैसे मालवी गौड़, श्री गौड़, गंगा पुत्र गौड़, वशिष्‍ट गौंड़, सौरभ गोड़, दालिभ्‍य गौड़, भटनागर गौड़, सुर्यद्वज गौड़,  मथुर गौड़, बाल्मिकी गौंड़, पारीक गौड़, सारस्‍वत गौड़, गुर्जर गौड़, शिखवाल गौड़, दाधीच गौड़, आदि । समय समय पर भगवान शंकराचार्य, रामनुज, वल्‍लभाचार्य आदि महात्‍माओं ने प्रकट होकर हिन्‍दू जाति के उद्धारार्थ बहुत कुछ प्रयत्‍न किया तथा सफल भी हुए, पर हिन्‍दू विशेषकर ब्राह्मण जाति नहीं संभली, परिणाम यह हुआ कि ब्राह्मणगण आपस में ही एक दूसरे की निन्‍दा और अपनी मिथ्‍या स्‍तुति करते हुए परस्‍पर ब्राह्मद्रोह का लाभ करने लगे। ब्राह्मणों की ऐसी अधोगति और कर्तव्‍यहीनता देखकर राजपूताना प्रदेश के अधिपति ब्राह्मणवत्‍सल महाराज सवाई जयसिंह को बड़ी चिन्‍ता हुई और उन्‍होंने अपने कुलगुरू पुरोहित (जो कि एक पारीक थे) की सम्‍मति से ब्राह्मणों में एकता और संगठन के लिये प्रशंसनीय उद्योग किया।

अश्‍वमेघयज्ञ के उपलक्ष्‍य में सम्‍वत 1645 चैत्रमास के शुक्‍ल पक्ष में समस्‍त देश के ब्राह्मणों का सम्‍मेलन कराके '' छ: न्‍याति संघ '' की स्‍थापना कि गई। जिसमें पारीक ब्राह्मणों को प्रथम स्‍थान पर रखा गया। सम्‍मेलन में निर्णय हुवा कि छ: न्‍याति संघ में भोजन व्‍यवहार एक और कन्‍या सम्‍बन्‍ध निज,निज वर्ग में निश्चित हुवा।

उस सभा में  ब्राह्मणों ने विद्वानों का इस प्रकार निर्णय सुना तो पारीक ब्राह्मण ही छन्‍याति वाले  ब्राह्मणों में सबसे प्रथम सहभोज में मिलकर छ: न्‍याति के भोजन में शामिल हुए। इसके अनन्‍तर छ: न्‍यति समुदाय के सारस्‍वत, दाहिमा, गौड़, गुर्जर गौड़, और शिखवाल भोजन में सम्मिलित हो गये। इसी कारण उसी दिन से छ: न्‍याति ब्राह्मणों में सह भोज होने लगा और विवाह, अपने अपने समुदाय में होने लगा। इस के बाद में खन्‍डेलवाल ब्राह्मण भी जब छ: न्‍यति से मिलने को तैयार हुए तो उनकी कहीं तो स्‍वीकार किया तथा कहीं तो नहीं किया।

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